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EYES FROM WHERE THE BEAUTY OF LIFE IS REFLECTED

आँखें: जहाँ से जीवन का सौंदर्य झलकता है

आँखें: जहाँ से जीवन का सौंदर्य झलकता है

आखें हमारे शरीर का जितना छोटा अंग है उतना ही महत्पूर्ण अंग भी है। आँखों में होने वाली बीमारी नजर में तो दोष लाती ही हैं पर आँखें हमारे शरीर का एक ऐसा दर्पण भी हैं जिसमें नेत्र रोग विशेषज्ञ, के द्वारा जाँच करने पर कई शरीर की छुपी हुई बीमारी के बारे में भी पता चल जाता है। जिसमें ब्लड प्रेशर, मधुमेह, घटियाबाद, थ्रोइड जैसी कई बीमारियां आती हैं । इस लेख में, मैं उन मुख्य बिमारियों के बारे में चर्चा करने वाला हूँ, जो सामान्य रूप से एक विशेष आयुवर्ग में देखी जाती हैं।

बच्चों में नेत्र रोग

आजकल बच्चों को चश्मे काफी लग रहे हैं और इस बात को लेकेमाँ बाप काफी चिंतित भी रहते हैं। चश्मे का नंबर होने पर वास्तविक रूप से किरणें आँखों में तो जाती हैं पर आँख केपरदे (Retina) तकनहीं पहुंच पाती हैं। इस को हम रेफ्रेक्टिवे एरर (Refractive error) बोलते हैं।

रेफ्रेक्टिवे एरर 4 प्रकार केहोते हैं।

  • मायोपिया (Myopia) - इसमें आँखों में जाने वाली किरणें रेटिना के आगे फोकस होती हैं।
  • ह्यपरमेट्रोपीअ (Hypermetropia) - इसमें आँखों में जाने वाली किरणें रेटिना केपीछे फोकस होती हैं।
  • एस्टीग्माटिस्म (Astigmatism) - इसमें कुछ ही कोण या एंगल से आने वाली किरणें रेटिना पे फोकस होती हैं, बाकिआगे या पीछे होती हैं।
  • प्रेस्ब्योपा (Presbyopia) - इसमें पास में देखते समय जो किरणें आंखों में जाती हैं वो रेटिना पे फोकस नहीं हो पाती हैं और सभी लोगों में सार्वजनिक रूप से ये 40 साल में देखा जाता है।

बच्चों में काफी हद तक चश्मे लगने का कारन मायोपिया ही है। इस पे कई स्टडीज हुई हैं और बताती हैं की जो बच्चे अपना ज्यादा तर समय बाहर बिताते हैं, उनको चस्मा और मायोपिया होने की सम्भावना काफी हद तक कम हो जाती है। यहाँ पे आज हमारी जनरेशन में ज्यादातर समय बचपन से ही बच्चे फोन पे और ज्ट पे बिताते हैं, जिससे काफी बच्चों को चश्मे का नंबर लग रहा है। उससे बड़ी समस्या यह है, कियह नंबर 3-4 साल की उम्र में भी लग जाता है और माँ बाप को पता भी नहीं चलता। कई बार 10 साल तक इस बात का एहसास नहीं होने पर आँख किरौशनी जिंदिगी भर केलिए कम ही रह जाती है। इसे लेजी ऑय (अंल मलम) या एमब्लिओपिअ (amblyopia) कहते हैं। चस्मा सही समय पे न लगाने पर आखों का विसुअल पोटेंशियल कम हो जाता है यानि की बाद में चस्मा लगाने पर भी नजर बढ़ती तो है पर थोड़ी सी ही और पूरी नही। इसलिए बच्चों में चश्मे की नंबर की जाँच करते रहना चाहिए।

युवा वर्ग में नेत्र रोग

आज कल युवा वर्ग में सबसे ज्यादा होने वाली समस्या आखों में कंप्यूटर विजन सिंड्रोम (बवउचनजमत अपेपवद लदक्तवउम) है जिसमें आखों में कालदमे हो रेंजप पि। ये लम्बे स्क्रीन टाइम के कारन होता है। जो लोग कंप्यूटर पे 6 घंटे से ज्यादा काम करते हैं उनमे डॉयनेस की प्रॉब्लम बढने लगती है जिसमें आखों में जलन, हल्का हल्का अचानकपानी आना, आखें भरी होना, तनाव पड़ना, और कुछ आँख में कंकड़ जैसा महसूस होना ये सभी सिम्पटम्स होते हैं। इसकेलिए यह सुझाव है की सिस्टम और मोबाइल पे काम करते समय वो हर 20 मीन्स में थोड़ा ब्रेकलें और पलकों को कुछ सेकण्ड्स झपकाएं। तब भी आराम न लगे तो डॉक्टर से संपर्क करें।

बुजुर्ग वर्ग में नेत्र रोग

60 साल केबाद सबसे प्र्ष्या बीमारी आखों में मोतियबिंद ही है। समझने की जरुरत यह है की मोतियबिंद कलिए कोई ड्रॉप्स कारगर नहीं होती हैं और कैटरेक्ट सर्जरी ही इसका एकमात्रा उपाय है। एक भ्रान्ति यह भी है की पूरा पकने केबाद ही ऑपरेशन कराना चाहिए जबकिपकने केबाद ऑपरेशन रिस्की हो जाता है और हम फो लेजर द्वारवा छोटे चीरे से ऑपरेशन नहीं कर सकते हैं, रिजल्ट भी उतना अच्छा नहीं आता। पूर्व में जो मोतियबिंद के ऑपरेशन 10-12 mm से होते थे आज लेटेस्ट technology में केवल 2.2 mm से ही संभव है, जिसमे कोई टंका भी नहीं लगता यह फैसिलिटी हमारे अपोलो सेज हॉस्पिटलमें भी उपलब्ध है, इन्ही सब करोणों से कैटरेक्ट सर्जरी अब एक डे केयर सर्जरी है और इसमें न के बराबर दर्द के साथ ही मरीज एक दिन से भी कम समय में ही हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हो जाता है और बहुत ही जल्द रिकवर करता है। अपनी आखों को लेकर सचेत रहें, समय पे चेक-अप करवाते रहें स्वथ्य रहें मस्त रहे।

Our Eye Specialist

Dr. Siddharth Malaiya 
M.S. (Ophthal.), FLVPEI (Cornea & Anterior Seg.)
FCORE (Ocular Surface & Stem cells)
Fellow L.V. Prasad Eye Institute, हैदराबाद
कॉर्निया ट्रांप्लांट, कैटरेक्ट एवं लैसिक सर्जन

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