AFTER 7 MONTHS OF PREGNANCY DEFINITELY MAKE A BIRTH PLAN FOR THE BABY
7 महीने की प्रेगनेंसी के बाद जरूर बना लें बेबी का बर्थ प्लान
आज के समय में ज्यादातर महिलाएं लेबर पेन के बहुत ही शुरुआती दौर में डर के कारण सीधे हॉस्पिटल आ जाती हैं। यहां पहुंचकर जब एक-दो घंटे बाद भी डिलीवरी नहीं होती तो धैर्य खो देती हैं और सीजेरियन डिलीवरी को चुन लेती हैं, जो एक गलत प्रैक्टिस है। इसकी बजाय यदि एक्टिव लेबर पेन शुरू होने तक का इंतजार घर पर ही करें, तो नॉर्मल डिलीवरी की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। इसके लिए बहुत जरूरी है कि आप अपनी प्रेगनेंसी के 7वें महीने में अपने बेबी के लिए बर्थ प्लान बना लें। इस बर्थ प्लान में सबसे पहले उस व्यक्ति का चुनाव करें, जो आपके साथ लेबर रूम में रहे, आपके दर्द को म महसूस कर सके और आपका सहारा बने। इस व्यक्ति को हम वो ब्रीदिंग एक्स्ससाइज भी सिखाते हैं, जोकि लेबर पेन के दौरान महिलाओं को करनी चाहिए, ताकि वह महिला की मदद कर सके। यह बात गायनोकोलॉजिस्ट डॉ. अनूपा वालिया ने रविवार को अपोलो-सेज हॉस्पिटल में आयोजित बेबी शॉवर शो में कही।
नाल कुछ देर बाद काटने के फायदे
कार्यक्रम में नवजात शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. भूपेंद्र गुप्ता ने कहा- बच्चे की नाल जन्म के बाद यदि एक या दो मिनट स्ककर काटी जाए, तो इससे बच्चे का श्वसनतंत्र मजबूत होता है। हम अक्सर कॉर्ड के साथ ही बच्चे को मां के सीने से लगाकर लिटाते हैं, इससे बच्चे के लिए दूध भी जल्दी बनने लगता है और मां-बच्चे की बॉन्डिंग बहुत स्ट्रॉन्ग बनती है।
पपीता खाने के प्रेगनेंसी में फायदे
डॉ. प्रीति भदोरिया ने बताया - प्रेगनेंसी में महिलाएं पपीता और पाइनएप्पल खाना बंद कर देती हैं, जबकि पपीता विटामिन-ए और कैरोटिन का अच्छा सोर्स है। वहीं पाइनएप्पल में ढेरों मिनिरल्स मिलते हैं, जो प्रेगनेंसी में मां के लिए बहुत अच्छे हैं। कई महिलाएं प्रेगनेंसी के शुरुआती 3 महीनों में अंडे नहीं खाती, जोकि पूरी तरह से भ्रांति है कि अंडा गर्म करता है और इससे मिस्कैरेज हो सकता है। एक अंडे में 6 ग्राम प्रोटीन शरीर को मिलता है। ऐसे में इसका सेवन भी आप पूरी प्रेगनेंसी के दौरान कर सकते हैं। डिलीवरी के बाद अक्सर महिलाओं को सिर्फ दूध और दलिया ही खिलाया जाता है. इस गलती से भी बचें।
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व्यायाम नियमित करें (सक्रिय जीवनशैली अपनाएं)
- नॉर्मल डिलीवरी के लिए शारीरिक सक्रियता बहुत ज़रूरी है। नियमित रूप से हल्का योग, प्रेगनेंसी वॉक या स्क्वाट्स करें। इससे श्रोणि (pelvis) क्षेत्र मजबूत होता है।
संतुलित आहार (सूपाच्य भोजन का सेवन)
- पौष्टिक भोजन जिसमें प्रोटीन, फाइबर, और आयरन भरपूर मात्रा में हो, लें। खासकर हरी पत्तेदार सब्ज़ियां, दाल, सूखे मेवे, और ताजे फल खाएं।
सांस लेने की तकनीक (गहरी श्वसन प्रक्रिया)
- प्रेगनेंसी के दौरान गहरी सांस लेने की आदत डालें। यह न सिर्फ आपको मानसिक रूप से शांत रखेगा, बल्कि प्रसव के समय दर्द सहने में भी मदद करेगा।
सकारात्मक सोच (मन-मस्तिष्क का प्रबंधन)
- नकारात्मक सोच से बचें और प्रसव के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखें। ध्यान (मेडिटेशन) और प्राणायाम नियमित रूप से करें।
सही पोस्चर (शरीर की मुद्रा)
- प्रेगनेंसी के दौरान सही मुद्रा में बैठने और सोने की आदत डालें। तकिये का सहारा लेकर आरामदायक स्थिति में लेटें।
डिलीवरी योजना बनाएं (सुप्रबंधित योजना)
- अपने डॉक्टर से प्रसव की सभी जानकारी प्राप्त करें और अस्पताल में समय पर जाने की तैयारी रखें।
पर्याप्त जल सेवन (जल संतुलन बनाए रखें)
- दिनभर में कम से कम 8-10 गिलास पानी पीएं। यह शरीर में जल संतुलन बनाए रखता है और प्रसव के दौरान मदद करता है।
मालिश (गर्भावस्था में तेल मालिश)
- शरीर की मांसपेशियों को लचीला बनाने के लिए हल्की तेल मालिश करें। खासतौर पर पीठ और पेट के निचले हिस्से में।
परिवार का सहयोग (भावनात्मक समर्थन)
- परिवार के साथ समय बिताएं और उनकी सलाह व सहयोग प्राप्त करें। इसका सकारात्मक असर मानसिक स्थिति पर पड़ता है।
डॉक्टर से नियमित जांच (स्वास्थ्य निगरानी)
- डॉक्टर से नियमित जांच कराते रहें और उनकी सलाह का पालन करें। कोई भी परेशानी महसूस होने पर तुरंत जानकारी दें।
इस प्रकार कुछ टिप्स को अपनाकर नॉर्मल डिलीवरी की संभावना बढ़ सकती है। स्वस्थ और सकारात्मक रहें!